जीवित्पुत्रिका व्रत कथा PDF | Jivitputrika Vrat Katha in Hindi

Jivitputrika Vrat Katha in Hindi PDF

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Jivitputrika Vrat Katha

Language

Hindi

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Multiple Sources

Category

Religious

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12/02/2024

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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा PDF | Jivitputrika Vrat Katha in Hindi

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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

धार्मिक कथाओं के मुताबिक बताया जाता है कि एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी। उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। दोनों पक्की सहेलियां थीं, दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया।

लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसके दाह संस्कार में सियारिन को भूख लगने लगी थी। मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया। पर चील ने संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया।

अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में जन्म लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था। चील, बड़ी बहन बनी और सिया‍रन, छोटी बहन के रूप में जन्‍मीं। चील का नाम शीलवती रखा गया, शीलवती की शादी बुद्धिसेन के साथ हुई। जबकि सियारिन का नाम कपुरावती रखा गया और उसकी शादी उस नगर के राजा मलायकेतु से हुई।

भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए। पर कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। कुछ समय बाद शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए और वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे। कपुरावती के मन में उन्‍हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी, उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए।

उन्‍हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया। यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया। इससे उनमें जान आ गई।

सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए, जो कटे सिर रानी ने भेजे थे वे फल बन गए। दूसरी ओर रानी कपुरावती, बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को व्याकुल थी। जब काफी देर सूचना नहीं आई तो कपुरावती स्वयं बड़ी बहन के घर गयी। वहां सबको जिंदा देखकर वह सन्न रह गयी, जब उसे होश आया तो बहन को उसने सारी बात बताई।

अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था, भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गईं। वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी और उसे सारी बातें बताईं। कपुरावती बेहोश हो गई और मर गई, जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्‍होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया।

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